Ramanyana: What is the story behind Ravana’s 10 heads? | रावण के 10 शीशों के पीछे की कहानी क्या है?

रावण के 10 शीशों की कहानी

पृथ्वी पर रावण नाम का एक शक्तिशाली राजा हुआ करता था। वह एक बुद्धिमान और विद्वान व्यक्ति था, जिसे वेदों और शास्त्रों का गहन ज्ञान था। हालांकि, वह अहंकारी और अत्यधिक महत्वाकांक्षी भी था।

रावण चाहता था कि वह दुनिया का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति बने और उसने इसके लिए भगवान शिव की घोर तपस्या की। वह वर्षों तक हिमालय की कठोर परिस्थितियों में रहा, बिना भोजन, पानी या आराम किए। उसकी तपस्या इतनी गहन थी कि वह खुद को भगवान शिव को समर्पित कर दिया।

रावण की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और उससे वरदान मांगने को कहा। रावण अमरता का वरदान चाहता था, लेकिन भगवान शिव ने उसे यह कहते हुए मना कर दिया कि अमरता किसी को नहीं दी जा सकती।

इसके बजाय, रावण ने एक अलग वरदान मांगा। उसने कहा, “हे भगवान, मुझे एक ऐसा वरदान दीजिए जिससे मुझे कोई मनुष्य या देवता नहीं मार सके।” भगवान शिव ने रावण को यह वरदान दिया, लेकिन उन्होंने उसे चेतावनी भी दी कि अगर वह कभी भी किसी स्त्री का अनादर करेगा, तो उसका अंत निश्चित होगा।

रावण अपने वरदान से अत्यंत प्रसन्न हुआ। उसने सोचा कि वह अब अजेय हो गया है और जो चाहे कर सकता है। वह और अधिक शक्तिशाली बनने के लिए मंत्रों का जाप करने लगा और उसने अपने सिर को एक-एक करके भगवान शिव को अर्पित कर दिया। हर बार जब वह अपना सिर काटता, तो उसका नया सिर उग आता। इस तरह, उसे दस सिर प्राप्त हुए।

रावण के दस सिरों को विभिन्न बुराइयों का प्रतीक माना जाता है:

  • काम (वासना)
  • क्रोध (गुस्सा)
  • लोभ (लालच)
  • मोह (भ्रम)
  • मद (घमंड)
  • मात्सर्य (ईर्ष्या)
  • बुद्धि (बुद्धि)
  • मन (दिमाग)
  • चित्त (इच्छा)
  • अहंकार (अहंकार)

रावण के दस सिर इस बात का प्रतीक हैं कि वह कितना शक्तिशाली और बुद्धिमान था, लेकिन साथ ही वह एक अभिमानी और अत्यधिक महत्वाकांक्षी व्यक्ति भी था। उसकी कहानी हमें सिखाती है कि अभिमान और अत्यधिक महत्वाकांक्षा व्यक्ति के पतन का कारण बन सकती है।

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